करीने से
सलीके से
सजाकर रखी गई चीजों में
एक गहन शांति होती है
जैसे कतार लगाकर
स्कूली बच्चों का बस से उतरता कोई समूह।
मगर आकाश में तारों को प्रकृति ने
न जाने यों क्यों नहीं लगाया है ?
उल्टा ऐसे फैलाया है जैसे हादसे में
टूटे हुए काँच का बेतरतीब फैला किसी के अरमानों का चकमक चूरा।
जिसे हाथ में लग जाने के भय से
कोई सकेर नहीं पाता है
और टूटे बिखरे कतरा-कतरा दिल को
यूं ही बेकार समझ छोड़ फलाँग कर
हर कोई निकल जाता है।
सलीके से
सजाकर रखी गई चीजों में
एक गहन शांति होती है
जैसे कतार लगाकर
स्कूली बच्चों का बस से उतरता कोई समूह।
मगर आकाश में तारों को प्रकृति ने
न जाने यों क्यों नहीं लगाया है ?
उल्टा ऐसे फैलाया है जैसे हादसे में
टूटे हुए काँच का बेतरतीब फैला किसी के अरमानों का चकमक चूरा।
जिसे हाथ में लग जाने के भय से
कोई सकेर नहीं पाता है
और टूटे बिखरे कतरा-कतरा दिल को
यूं ही बेकार समझ छोड़ फलाँग कर
हर कोई निकल जाता है।
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