Wednesday, September 9, 2015

बेतरतीब आकाश

करीने से
सलीके से 
सजाकर रखी गई चीजों में 
एक गहन शांति होती है
जैसे कतार लगाकर
स्कूली बच्चों का बस से उतरता कोई समूह। 

मगर आकाश में तारों को प्रकृति ने
न जाने यों क्यों नहीं लगाया है ?
उल्टा ऐसे फैलाया है जैसे हादसे में 
टूटे हुए काँच का बेतरतीब फैला किसी के अरमानों का चकमक चूरा। 

जिसे हाथ में लग जाने के भय से 
कोई सकेर नहीं पाता है 
और टूटे बिखरे कतरा-कतरा दिल को 
यूं ही बेकार समझ छोड़ फलाँग कर
हर कोई निकल जाता है। 



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