सब जगह
सब कुछ पूरा क्या ?
अधिक ही है रखा हुआ,दिया हुआ
ईश्वर और प्रकृती ने हमारे लिए
अपने हिसाब से।
मगर चाहतों,वासनाओं की भीतरी गड़बड़ी-हड़बड़ी में
तो ये सब हमें कम व अधूरा लगता है
पूरा नहीं जान पड़ता है।
वरना, सूर्य की रश्मियाँ
उफनते सागर की विद्युत शक्तियाँ
ये पानी के लगातार बहते झरने
ये दिनोदिन उपजती वनस्पतियाँ
ये पहाड़ व खनिजों के भंडार
और पृथ्वी की अथाह लम्बाई-चौड़ाई
यानि प्रकृती के सभी अकूत-अक्षत खजाने
चैन से,बाँट कर खाने भर से भला
कम पड़ जाने वाले हैं ?
खत्म हो जाने वाले हैं ?
अच्छा हो अपने अंदर की
भूख को, घबराहट को, रीतेपन को
वस्तुओं से नहीं सय्यम में समेटो।
सब कुछ पूरा क्या ?
अधिक ही है रखा हुआ,दिया हुआ
ईश्वर और प्रकृती ने हमारे लिए
अपने हिसाब से।
मगर चाहतों,वासनाओं की भीतरी गड़बड़ी-हड़बड़ी में
तो ये सब हमें कम व अधूरा लगता है
पूरा नहीं जान पड़ता है।
वरना, सूर्य की रश्मियाँ
उफनते सागर की विद्युत शक्तियाँ
ये पानी के लगातार बहते झरने
ये दिनोदिन उपजती वनस्पतियाँ
ये पहाड़ व खनिजों के भंडार
और पृथ्वी की अथाह लम्बाई-चौड़ाई
यानि प्रकृती के सभी अकूत-अक्षत खजाने
चैन से,बाँट कर खाने भर से भला
कम पड़ जाने वाले हैं ?
खत्म हो जाने वाले हैं ?
अच्छा हो अपने अंदर की
भूख को, घबराहट को, रीतेपन को
वस्तुओं से नहीं सय्यम में समेटो।
No comments:
Post a Comment