हे वैजानिकों!
इस धरती पर
मौजूदा आकारों-प्रकारों व अनुभवों के परिपेक्ष्य में
उपजी जीवन की परिभाषा के अनुसार ही
तुम पूरे ब्रह्माण्ड में फैले ग्रहों एवं उपग्रहों पर
जीवन का तुम करते हो खोज व विचार
और इन्हीं सीमाओं में बंधकर (घेरे में )
हमारा विजान भी फंसकर हो गया है लाचार।
मगर हमारी पृथ्वी पर जीवन की परिभाषा पर
नहीं टिका है समूचा ब्रह्माण्ड, जैसेकि
बर्तन में झांकने से पानी भरे बर्तन के मुहाने
जितना ही सूझता-दिखता है आकाश
और तुम उसे सिर्फ उतना ही मानकर
चलते-करते हो सदा गौण व्यवहार लगातार।
वस्तुतः इस ब्रह्माण्ड की विशाल काया की नियति पर टिका है
इस नन्हीं-सी धरती के जीवन का सूक्ष्म आधार।
अगर आगे जाना है क्षतिजों के पार तो
इससे बड़ी ब्रह्म व्यवस्था को टटोल-टटोल कर निकालो
और बिना शरीर वहां पर जीने का कोई रास्ता निकालो
वरना,
इस धरती पर रहो और
धरतीवासियों का जीवन सम्भालो।
इस धरती पर
मौजूदा आकारों-प्रकारों व अनुभवों के परिपेक्ष्य में
उपजी जीवन की परिभाषा के अनुसार ही
तुम पूरे ब्रह्माण्ड में फैले ग्रहों एवं उपग्रहों पर
जीवन का तुम करते हो खोज व विचार
और इन्हीं सीमाओं में बंधकर (घेरे में )
हमारा विजान भी फंसकर हो गया है लाचार।
मगर हमारी पृथ्वी पर जीवन की परिभाषा पर
नहीं टिका है समूचा ब्रह्माण्ड, जैसेकि
बर्तन में झांकने से पानी भरे बर्तन के मुहाने
जितना ही सूझता-दिखता है आकाश
और तुम उसे सिर्फ उतना ही मानकर
चलते-करते हो सदा गौण व्यवहार लगातार।
वस्तुतः इस ब्रह्माण्ड की विशाल काया की नियति पर टिका है
इस नन्हीं-सी धरती के जीवन का सूक्ष्म आधार।
अगर आगे जाना है क्षतिजों के पार तो
इससे बड़ी ब्रह्म व्यवस्था को टटोल-टटोल कर निकालो
और बिना शरीर वहां पर जीने का कोई रास्ता निकालो
वरना,
इस धरती पर रहो और
धरतीवासियों का जीवन सम्भालो।
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