भय
हार जाता हूँ मैं
मैं हार जाता हूँ
अपने ही भय से।
पिटा हूँ कई बार
उन्ही हाथों से
जिन हाथों ने भीरु बनाया था मुझे
वैसे मेरी अपनी ही कमजोरी
तोड़ती है मेरे मन को
मेरे तन को।
कई बार सब छोड़-छाड़ कर भाग जाना चाहता हूँ
मगर चाहकर भी
यह कर नहीं पाता हूँ
क्योंकि
हार जाता हूँ मैं,
मैं
हार जाता हूँ अपने ही भय से।
हार जाता हूँ मैं
मैं हार जाता हूँ
अपने ही भय से।
पिटा हूँ कई बार
उन्ही हाथों से
जिन हाथों ने भीरु बनाया था मुझे
वैसे मेरी अपनी ही कमजोरी
तोड़ती है मेरे मन को
मेरे तन को।
कई बार सब छोड़-छाड़ कर भाग जाना चाहता हूँ
मगर चाहकर भी
यह कर नहीं पाता हूँ
क्योंकि
हार जाता हूँ मैं,
मैं
हार जाता हूँ अपने ही भय से।
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