Wednesday, January 23, 2019

वर्चस्व

पद का रौब बताकर
बाहुबल दिखाकर या
पैसे की अकड़ जमाकर या
किसी भी अन्य तरीके से
जब भी तुम अपने को
सबसे बड़ा बताने का प्रयास कर रहे होते हो
तो तब तुम एक छोटे बच्चे से भी
छोटे दिखने लग जाते हो...
जो बचपने में अपने साथियों को
अपनी पॉकेटमनी दिखाकर या
ऊँची टेकली पर चढ़कर या
अपनी नयी नकली पटाखे वाली
पिस्तौल दिखाकर चिढ़ाता है और
अपने को दूसरों से बड़ा बताने का
सुख पाना चाहता है...
बच्चा तो नहीं
किंतू तुम तो भीतर ही भीतर
यह जानते ही हो न कि
यह सब क्षणिक है,
इसमें कुछ स्थायी नहीं
और तुम्हें कभी भी
फिर इन्हीं में ही लौट के आना है
इन जैसा
हो जाना है...
       -----     सुरेन्द्र भसीन

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