Tuesday, January 8, 2019

उत्तरों के खोखे

कई कई बार
मैं अकेला ही अपने भीतर
गहरे
उतर जाता हूँ
अपनी यादों को
टटोलते..टटोलते....
जैसे रेतीले समुद्र से
शैवाल(सीपियाँ) चुनता कोई बच्चा
उन्हें उल्ट पल्ट कर देखता है बार बार
पता नहीं...
पता नहीं वह
इन शैवालों से क्या चाहता है?
मुझे नहीं पता कि मेरा मन भी
इन बीते लम्हों को याद कर कर के
क्या चाहता है?
शायद किन्ही बड़े बड़े सवालों के जवाब
जो इन शैवालों में ही गुम गए थे कहीं...
अब जिनके
खोखले खोखे पड़े हैं
समुद्र के किनारे यूँ ही
खुद ही सवाल होकर...
       ------    सुरेन्द्र भसीन

No comments:

Post a Comment