हम
बच्चों को
लिखाते-पढ़ाते
तेज-तेज अपने हिसाब से चलाकर ही
जीवन में आगे बढ़ाते हैं सदा...
हमें छोड़ अगर वे जब आगे निकल जाते हैं
तो उनकी जरूरत महसूसते हम
उनसे नाराज़ हो जाते हैं...
अगर वे
होशियार नहीं बन पाते तो हम उन्हें
कमज़ोर मान उन्हें कोसने लग जाते हैं सदा...
उम्र के एक पड़ाव तक हम
उन्हें आगे चाहते हैं तो
बाद में अपने साथ या पीछे...
यूँ जीवन भर
बच्चों को नहीं
हम अपना स्वार्थ पालते हैं...
हमें
बच्चे नहीं
अपनी जरूरत का इंतजाम चाहिए
हमारे हिसाब से रुकें या बढ़ें
ऐसे बधे-सधे गुलाम चाहिए...
------- सुरेन्द्र भसीन
बच्चों को
लिखाते-पढ़ाते
तेज-तेज अपने हिसाब से चलाकर ही
जीवन में आगे बढ़ाते हैं सदा...
हमें छोड़ अगर वे जब आगे निकल जाते हैं
तो उनकी जरूरत महसूसते हम
उनसे नाराज़ हो जाते हैं...
अगर वे
होशियार नहीं बन पाते तो हम उन्हें
कमज़ोर मान उन्हें कोसने लग जाते हैं सदा...
उम्र के एक पड़ाव तक हम
उन्हें आगे चाहते हैं तो
बाद में अपने साथ या पीछे...
यूँ जीवन भर
बच्चों को नहीं
हम अपना स्वार्थ पालते हैं...
हमें
बच्चे नहीं
अपनी जरूरत का इंतजाम चाहिए
हमारे हिसाब से रुकें या बढ़ें
ऐसे बधे-सधे गुलाम चाहिए...
------- सुरेन्द्र भसीन
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