पिंजर का पिंजरा
हम सभी को तो
यही सदा लगता है न कि
हम अपनी मर्जी से ही
आ जा रहे हैं, खा पी रहे हैं और
सबकुछ देख सुन भी रहे हैं...
मग़र ऐसा नहीं है
बड़े ही शातिराना तरीके से
हमसे यह सब करवाया जा रहा है
और एक बड़ा झूठ हमसे सच के रूप में
मनवाया जा रहा है -
कि हम आजाद हैं
कि हम स्वयं की मर्जी के मालिक हैं...।
मग़र कितनों?
कितनों को यह पता है कि
हम समाज के बंधक हैं चंद सुविधाओं के लिए
रहन रखी जा चुकी रिश्तों-नातों की डोर में कसी
एक चल-सी दिखती सम्पत्ति...।
जिसे विज्ञापनों,सामाजिक सीखों और
शिक्षा के दौरों द्वारा यह अहसास पचाया जाता है कि
हम पूर्णतः आज़ाद हैं!
अपनी ही मर्जी से
खा-पी, देख-सुन और
चल फिर भी रहे हैं...
........ सुरेन्द्र भसीन
हम सभी को तो
यही सदा लगता है न कि
हम अपनी मर्जी से ही
आ जा रहे हैं, खा पी रहे हैं और
सबकुछ देख सुन भी रहे हैं...
मग़र ऐसा नहीं है
बड़े ही शातिराना तरीके से
हमसे यह सब करवाया जा रहा है
और एक बड़ा झूठ हमसे सच के रूप में
मनवाया जा रहा है -
कि हम आजाद हैं
कि हम स्वयं की मर्जी के मालिक हैं...।
मग़र कितनों?
कितनों को यह पता है कि
हम समाज के बंधक हैं चंद सुविधाओं के लिए
रहन रखी जा चुकी रिश्तों-नातों की डोर में कसी
एक चल-सी दिखती सम्पत्ति...।
जिसे विज्ञापनों,सामाजिक सीखों और
शिक्षा के दौरों द्वारा यह अहसास पचाया जाता है कि
हम पूर्णतः आज़ाद हैं!
अपनी ही मर्जी से
खा-पी, देख-सुन और
चल फिर भी रहे हैं...
........ सुरेन्द्र भसीन
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