स्तब्ध
पत्थर
कैसे भी हों
खूबसूरत ही होते हैं
अपना एक निश्चित आकार लिए
एक कठोर कड़ा विचार लिए
निस्पंद,निसंकोच निहारते सबकुछ
तराशे हुए
दीवारों,मीनारों में चिने-चुने
अनगिनत रहस्यों को समेटते
चीखों-चीत्कारों के साक्षी
समय को,इंसानी फ़ितरत की उलट-पलट देखते
स्तब्ध/ख़ामोश
एक दूसरे पर जमे.... जमे।
-------- सुरेन्द्र भसीन
पत्थर
कैसे भी हों
खूबसूरत ही होते हैं
अपना एक निश्चित आकार लिए
एक कठोर कड़ा विचार लिए
निस्पंद,निसंकोच निहारते सबकुछ
तराशे हुए
दीवारों,मीनारों में चिने-चुने
अनगिनत रहस्यों को समेटते
चीखों-चीत्कारों के साक्षी
समय को,इंसानी फ़ितरत की उलट-पलट देखते
स्तब्ध/ख़ामोश
एक दूसरे पर जमे.... जमे।
-------- सुरेन्द्र भसीन
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