Thursday, December 13, 2018

स्तब्ध

स्तब्ध

पत्थर
कैसे भी हों
खूबसूरत ही होते हैं
अपना एक निश्चित आकार लिए
एक कठोर कड़ा विचार लिए
निस्पंद,निसंकोच निहारते सबकुछ
तराशे हुए
दीवारों,मीनारों में चिने-चुने
अनगिनत रहस्यों को समेटते
चीखों-चीत्कारों के साक्षी
समय को,इंसानी फ़ितरत की  उलट-पलट देखते
स्तब्ध/ख़ामोश
एक दूसरे पर जमे.... जमे।
            --------      सुरेन्द्र भसीन  

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