Wednesday, June 6, 2018

आत्मायें और इच्छायें

इस
क्षणभंगुर संसार में
जितनी आत्माएं नहीं हैं
उनसे कई गुणा चाहतें हैं विचरतीं...
कुछ चींटी से भी महीन
कुछ दानवाकार,
सब कुछ लील जाने को आतुर..
कुछ रंग बिरंगे गुब्बारे-सी
जरूरतों की हवा से फूलती फैलतीं
एक दूजे से टकराती, संघर्ष करती
जीतती-हारती
अपनी जगह स्थापित हो जातीं या फिर
हारकर वक्त में तिरोहित हो
पुनर्जन्म लेतीं।
आत्माओं से कहीं ज्यादा अदृश्य
मगर पूरा जीवन घेरतीं।
आत्मा ही इच्छा हो जाती और कभी
इच्छा ही आत्मा बन कर देह धरती मगर
दोनों देह में आतीं।
वे अस्तित्वहीन होकर भी
हमें भर्मित करतीं
हैं, मगर
सदा अजर-अमर।
       -----      सुरेन्द्र भसीन 

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