हर बार की तरह
इस बार भी हमारे
एक दूजे के प्रति समर्पित भाव
होठों पर ही बर्फ हो गए हैं
शब्द बनने से पहले...।
जबभी जबभी
हमारे दिल से दिल मिल जाते हैं
जिस्म से जिस्म टकराते हैं
और हम सिसकियों सिसकारियों में
अनेकानेक रातें बीताते हैं।
और हमारे होंठ सिले,
शब्द बर्फ बने रह जाते हैं
तब जिस्म ही एक दूजे को
बहुत कुछ
कह सुन जाते हैं।
------ सुरेन्द्र भसीन
इस बार भी हमारे
एक दूजे के प्रति समर्पित भाव
होठों पर ही बर्फ हो गए हैं
शब्द बनने से पहले...।
जबभी जबभी
हमारे दिल से दिल मिल जाते हैं
जिस्म से जिस्म टकराते हैं
और हम सिसकियों सिसकारियों में
अनेकानेक रातें बीताते हैं।
और हमारे होंठ सिले,
शब्द बर्फ बने रह जाते हैं
तब जिस्म ही एक दूजे को
बहुत कुछ
कह सुन जाते हैं।
------ सुरेन्द्र भसीन
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