निवेदन
मैं
तुम्हारे जीवन में
एक सूखते पौधे की तरह से ही हूँ
जिसकी अब तुम्हें
याद नहीं आती है कभी...
तुम उसे अपने प्यार का
जल नहीं चढ़ाती हो अब कभी...
तुमने अपनी दिल की बगिया में
अनेकानेक ऊँचे-बड़े पेड़ लगा लिए हैं
असंख्य तरह के फूल भी खिला लिए हैं
जिनसे तुम सदा खेल-बतिया लेती हो
अपने प्रेम-स्नेह-अपनत्व का जल उन्हें ही
चढ़ा देती हो, मगर
इधर बचपन से तुम्हारे दिल के
एक कोने में उगा-बसा मैं
उपेक्षित-रीता,
सूखता ही जाता हूँ।
निवेदन है कि मेरी भी व्यथा सुनो!
मैं हूँ, बचपन का
तुम्हारी दिल की बगिया में उगा
तुम्हारी चाहत में
एक सूखता, पौध!
------ सुरेन्द्र भसीन
मैं
तुम्हारे जीवन में
एक सूखते पौधे की तरह से ही हूँ
जिसकी अब तुम्हें
याद नहीं आती है कभी...
तुम उसे अपने प्यार का
जल नहीं चढ़ाती हो अब कभी...
तुमने अपनी दिल की बगिया में
अनेकानेक ऊँचे-बड़े पेड़ लगा लिए हैं
असंख्य तरह के फूल भी खिला लिए हैं
जिनसे तुम सदा खेल-बतिया लेती हो
अपने प्रेम-स्नेह-अपनत्व का जल उन्हें ही
चढ़ा देती हो, मगर
इधर बचपन से तुम्हारे दिल के
एक कोने में उगा-बसा मैं
उपेक्षित-रीता,
सूखता ही जाता हूँ।
निवेदन है कि मेरी भी व्यथा सुनो!
मैं हूँ, बचपन का
तुम्हारी दिल की बगिया में उगा
तुम्हारी चाहत में
एक सूखता, पौध!
------ सुरेन्द्र भसीन
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