भूख
ये जो
पत्थर चला रहा हूँ न मैं
मेरा शौक नहीं
मेरी चाहत भी नहीं
मेरी बड़ी मजबूरी है।
ये फैंके पत्थर ही पाट रहे
मेरी रोटी और पेट की दूरी हैं।
कोई करता रहे सियासत
तो कोई मानता रहे हमें बाग़ी
हम क्या करें?
हमारे लिए तो यह
बस जीने की मजबूरी है।
गोली से मरे हम
या मरे भूख से तड़पकर हम
हमारे लिए दोनों में से
तो बस एक चुनना जरुरी है।
बुरा न मानों भाइयो
ये जो पत्थर चला रहा हूँ मैं और
तुम मुझ पर गोली
ये हमारा धर्म या देशप्रेम नहीं
हमारी दोनों भूखों
की मजबूरी है।
------------------ सुरेन्द्र भसीन
ये जो
पत्थर चला रहा हूँ न मैं
मेरा शौक नहीं
मेरी चाहत भी नहीं
मेरी बड़ी मजबूरी है।
ये फैंके पत्थर ही पाट रहे
मेरी रोटी और पेट की दूरी हैं।
कोई करता रहे सियासत
तो कोई मानता रहे हमें बाग़ी
हम क्या करें?
हमारे लिए तो यह
बस जीने की मजबूरी है।
गोली से मरे हम
या मरे भूख से तड़पकर हम
हमारे लिए दोनों में से
तो बस एक चुनना जरुरी है।
बुरा न मानों भाइयो
ये जो पत्थर चला रहा हूँ मैं और
तुम मुझ पर गोली
ये हमारा धर्म या देशप्रेम नहीं
हमारी दोनों भूखों
की मजबूरी है।
------------------ सुरेन्द्र भसीन