Wednesday, January 23, 2019

वर्चस्व

पद का रौब बताकर
बाहुबल दिखाकर या
पैसे की अकड़ जमाकर या
किसी भी अन्य तरीके से
जब भी तुम अपने को
सबसे बड़ा बताने का प्रयास कर रहे होते हो
तो तब तुम एक छोटे बच्चे से भी
छोटे दिखने लग जाते हो...
जो बचपने में अपने साथियों को
अपनी पॉकेटमनी दिखाकर या
ऊँची टेकली पर चढ़कर या
अपनी नयी नकली पटाखे वाली
पिस्तौल दिखाकर चिढ़ाता है और
अपने को दूसरों से बड़ा बताने का
सुख पाना चाहता है...
बच्चा तो नहीं
किंतू तुम तो भीतर ही भीतर
यह जानते ही हो न कि
यह सब क्षणिक है,
इसमें कुछ स्थायी नहीं
और तुम्हें कभी भी
फिर इन्हीं में ही लौट के आना है
इन जैसा
हो जाना है...
       -----     सुरेन्द्र भसीन

Tuesday, January 22, 2019

समझदारी

रोटी ही
बड़ी होती है पृथ्वी नहीं
यह मैंने तब जाना
जब मैंने अपनी अन्तड़ियों में
और लोगों की नीयत में पैठी
भूख को पहचाना
रोटी की ज़रूरत को जाना...
रोटी की चाह
जो निगल जाती है-
पहाड़ के पहाड़,
जंगल के जंगल,
बाग-बागान,खेत-खलिहान,
धरती के खनिज, फैक्ट्री की फैक्टरियाँ..
इज्जत,ईमान धर्म और ईश्वर भी
मग़र वैसी की वैसी ही
बनी रहती है सदियों पुरानी
जैसे कि थी...
घूमती...घुमाती
मग़र न टस...न मस...
बिल्कुल ठस!
       -----   सुरेन्द्र भसीन

Monday, January 21, 2019

आदरणीय मैडम जी,
     जैसा कि सर्वविदित है कि हिंदी साहित्य की कविता विधा में डॉ बलदेव वंशी एक जाना माना नाम है। उनके किये गए आधुनिक कविता, विचार कविता में व सन्त साहित्य में खोजपरक कार्यों को हर कोई  मानता और सराहता रहा है, इसलिए उन्हें राष्ट्रपति पृरस्कार से भी नवाजा गया था।
         7जनवरी 2018 को उनका स्वर्गवास हुआ और एक वर्ष उपरांत हमनें(उनके दोनों सपुत्रों) ने उनकी सभी
अप्रकाशित कविताओं का एक संकलन 'ऋत अभी शेष है' नाम से प्रकाशित किया है जिसकी भूमिका  प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री प्रेमजन्मजेय जी ने लिखी है,का विमोचन 2फरवरी 2019 सांय 5.0बजे हिंदी भवन में होना तय हुआ है। अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप इस कार्यक्रम को दूरदर्शन के श्रोताओं को भी उपलब्ध करा कर हमें भी अनुगृहित करें जैसाकि आपने उनके पूर्व के कार्यक्रमों को प्रसारित कर हमें उपकृत किया था।
   धन्यवाद!
भवदीय
वीरेन्द्र भसीन एवं सुरेन्द्र भसीन
9811037758 & 9899034323
सुपुत्र डॉ बलदेव वंशी

Sunday, January 20, 2019

इस पृथ्वी के
हजारों किलोमीटर ऊपर तो
कहीं चाँद है।
लाखों किलोमीटर ऊपर है सूर्य,
करोड़ों किलोमीटर ऊपर,
दूर तारों का समूह...
उसमें भी कोई आख़री तारा भी होगा ही
और उसके बाद...
और...और...कुछ और...
जानते हैं हम
मानते हैं हम तो
यही तो ईश्वर है
यही ईश्वर का
रूप स्वरूप
....और क्या?
      -----  सुरेन्द्र भसीन

Thursday, January 17, 2019

       दिवंगत कवि श्री बलदेव वंशी को
       श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनके
       नवीन कविता संग्रह -
       "ऋत अभी शेष है" का विमोचन
        श्री....................के द्वारा
        2फरवरी,2019, शाम 5.00 बजे
                 हिंदी भवन में

संयोजक........



   

              ....उनकी याद में


एक वर्ष बीत गया प्रिय पिता व कवि बलदेव वंशी को हमसे
जुदा हुए। आईये हम मिलें ,बैठें साथ-साथ अपने अनुभव साझा करने 2फरवरी, 2019 शाम 5.00 बजे हिंदी भवन दिल्ली।
        'ऋत अभी शेष है' उनके नवीनतम काव्य संग्रह के विमोचन के साथ श्री प्रेमजन्मजेय,.............
और आप अपनी मन की बात रखेंगे श्री.... 
 की अध्यक्षता में।
         .....आप आ रहे हैं न!


इंतजार-






Tuesday, January 8, 2019

उत्तरों के खोखे

कई कई बार
मैं अकेला ही अपने भीतर
गहरे
उतर जाता हूँ
अपनी यादों को
टटोलते..टटोलते....
जैसे रेतीले समुद्र से
शैवाल(सीपियाँ) चुनता कोई बच्चा
उन्हें उल्ट पल्ट कर देखता है बार बार
पता नहीं...
पता नहीं वह
इन शैवालों से क्या चाहता है?
मुझे नहीं पता कि मेरा मन भी
इन बीते लम्हों को याद कर कर के
क्या चाहता है?
शायद किन्ही बड़े बड़े सवालों के जवाब
जो इन शैवालों में ही गुम गए थे कहीं...
अब जिनके
खोखले खोखे पड़े हैं
समुद्र के किनारे यूँ ही
खुद ही सवाल होकर...
       ------    सुरेन्द्र भसीन

Saturday, January 5, 2019

हमें बच्चे नहीं गुलाम चाहिएं

हम
बच्चों को
लिखाते-पढ़ाते
तेज-तेज अपने हिसाब से चलाकर ही
जीवन में आगे बढ़ाते हैं सदा...
हमें छोड़ अगर वे जब आगे निकल जाते हैं
तो उनकी जरूरत महसूसते हम
उनसे नाराज़ हो जाते हैं...
अगर वे
होशियार नहीं बन पाते तो हम उन्हें
कमज़ोर मान उन्हें कोसने लग जाते हैं सदा...
उम्र के एक पड़ाव तक हम
उन्हें आगे चाहते हैं तो
बाद में अपने साथ या पीछे...
यूँ जीवन भर
बच्चों को नहीं
हम अपना स्वार्थ पालते हैं...
हमें
बच्चे नहीं
अपनी जरूरत का इंतजाम चाहिए
हमारे हिसाब से रुकें या बढ़ें
ऐसे  बधे-सधे गुलाम चाहिए...
        -------   सुरेन्द्र भसीन