मंजिल
ही नहीं है सब कुछ
इंतजार,रास्ते और अनुभव भी
है बहुत कुछ
यूँ मंजिल की चाह में पगलाए
हम सदा दौड़े चले जाते हैं
रास्तों का, अनुभवों का, इंतजार का
आनंद नहीं ले पाते
इसलिए हमारे जीवन में त्यौहार आते हैं
ये वो बाग-बगीचे हैं
मीठे झरने या प्याऊ हैं पानी के
छायादार बृक्ष हैं
पूर्वजों का दिया आशीर्वाद हैं
जिनके तले बैठकर,रूककर,मनाकर
हम आराम पाते,खुशी मनाते हैं
पल पल का सुख
संजोकर ही हम
मंजिल को पाते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
ही नहीं है सब कुछ
इंतजार,रास्ते और अनुभव भी
है बहुत कुछ
यूँ मंजिल की चाह में पगलाए
हम सदा दौड़े चले जाते हैं
रास्तों का, अनुभवों का, इंतजार का
आनंद नहीं ले पाते
इसलिए हमारे जीवन में त्यौहार आते हैं
ये वो बाग-बगीचे हैं
मीठे झरने या प्याऊ हैं पानी के
छायादार बृक्ष हैं
पूर्वजों का दिया आशीर्वाद हैं
जिनके तले बैठकर,रूककर,मनाकर
हम आराम पाते,खुशी मनाते हैं
पल पल का सुख
संजोकर ही हम
मंजिल को पाते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
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