मैं तो
कितनी बार
अपने को समझाता हूँ
कि दुनियादार बनो!समझदार बनो!
तब ख़ासकर तब
जब मैं किसी नयी जगह जाता हूँ याफिर
नये लोगों के बीच जाता हूँ।
मग़र हर बार
हर बार न चाहते हुए भी और
लाख रोकना चाहकर भी
सच मेरे मुँह से निकल ही जाता है
और मेरा सारा प्रयास असफल
ही हो जाता है।
सब समझ जाते हैं
ये हमारे बीच रहने/बैठने के योग्य नहीं
ये समझदार नहीं,दुनियादार नहीं।
ये सच का रोगी है
ये ज़रूर कोई कांड करवायेगा
किसी दिन ख़ुद तो मरेगा ही
हमें भी मरवायेगा।
कोई तो कह भी देता है इशारे से कि
भैया! पहले इस बीमारी का ईलाज करवा
फिर हमारे बीच में आ
वरना हमारे बीच में मत आ
इस सच को लेकर भाड़ में जा!
------- सुरेन्द्र भसीन
कितनी बार
अपने को समझाता हूँ
कि दुनियादार बनो!समझदार बनो!
तब ख़ासकर तब
जब मैं किसी नयी जगह जाता हूँ याफिर
नये लोगों के बीच जाता हूँ।
मग़र हर बार
हर बार न चाहते हुए भी और
लाख रोकना चाहकर भी
सच मेरे मुँह से निकल ही जाता है
और मेरा सारा प्रयास असफल
ही हो जाता है।
सब समझ जाते हैं
ये हमारे बीच रहने/बैठने के योग्य नहीं
ये समझदार नहीं,दुनियादार नहीं।
ये सच का रोगी है
ये ज़रूर कोई कांड करवायेगा
किसी दिन ख़ुद तो मरेगा ही
हमें भी मरवायेगा।
कोई तो कह भी देता है इशारे से कि
भैया! पहले इस बीमारी का ईलाज करवा
फिर हमारे बीच में आ
वरना हमारे बीच में मत आ
इस सच को लेकर भाड़ में जा!
------- सुरेन्द्र भसीन
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