Wednesday, July 17, 2019

व्यंग्यात्मक हँसी

कौन
हँसना नहीं चाहता...?
हँसना तो मैं भी चाहता हूँ
मग़र ढूंढने पर भी
दूर-दूर तक
हँसने की कोई वजह नहीं पाता हूँ।
बिना वजह अगर हँसू तो
मूर्ख ही तो कहलाता हूँ...
फिर मैं क्या करूँ?
हँसना तो मैं भी चाहता हूँ
मगर
क्या अच्छा/हँसने योग्य
घटित हो रहा है भला जीवन में/राजनीति में
जो मैं हँसूं?
हास्य तो
कपूर की तरह काफ़ूर हो चुका है
हास्य-व्यंग्य में से
बस व्यंग्य बचा रह गया है जीवन में
तो जब तक
हँसी की वजह नहीं मिल जाती जीवन में
तब तक
व्यंग्यात्मक हँसी
तो मैं
हँस ही लेता हूँ...।
         ---------     सुरेन्द्र भसीन

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