Tuesday, November 12, 2019

चाहतों के दायरे

पूरा ही नहीं पड़ता
कोई सा भी दायरा
चाहे कितना भी बड़ा ही
क्यों नहीं खींचें हम अपनी चाहतों का...
सदा बहुत कुछ
बाहर ही रह जाता है....और...
आखिर में अपने दायरे में आदमी
अकेले ही खड़ा रह जाता है
न हँस पाता है...
न रो पाता है...
अपने ही दायरे में सिमटा सिमटा
छोटा बिंदु हो जाता है...
     -----   सुरेन्द्र भसीन

No comments:

Post a Comment