पूरा ही नहीं पड़ता
कोई सा भी दायरा
चाहे कितना भी बड़ा ही
क्यों नहीं खींचें हम अपनी चाहतों का...
सदा बहुत कुछ
बाहर ही रह जाता है....और...
आखिर में अपने दायरे में आदमी
अकेले ही खड़ा रह जाता है
न हँस पाता है...
न रो पाता है...
अपने ही दायरे में सिमटा सिमटा
छोटा बिंदु हो जाता है...
----- सुरेन्द्र भसीन
कोई सा भी दायरा
चाहे कितना भी बड़ा ही
क्यों नहीं खींचें हम अपनी चाहतों का...
सदा बहुत कुछ
बाहर ही रह जाता है....और...
आखिर में अपने दायरे में आदमी
अकेले ही खड़ा रह जाता है
न हँस पाता है...
न रो पाता है...
अपने ही दायरे में सिमटा सिमटा
छोटा बिंदु हो जाता है...
----- सुरेन्द्र भसीन
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