Wednesday, November 6, 2019

कई कई बार
दृष्टि बस वही देखती है
जोकि हम देखना चाहते हैं
बुद्धि वही समझती है
जो हम समझना चाहते हैं
दो जमा दो आठ अगर
बैठ गया किसी वक़्त दिमाग में तो
चार फिर हो ही नहीं पाता है
अपनी इन्हीं जरूरतों-इच्छाओं को
जहन में समेटे गरीब
नेताओं के सम्मोहन के जाल में
तब फंस जाता है जब चुनाव में वायदों का
झुनझुना उसके कान में बजाया जाता है
और हर चुनाव के बाद
ठगे,अवाक से हम
यह नहीं झ पाते कि
हमसे हर बार हमारे ही विरूद्ध
षड्यंत्र कैसे कराया जाता है।
       ------     सुरेन्द्र भसीन

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