व्यक्तित्व
तुम
भीतर तक
दुख पाए हुए हो
जैसे दीमक खायी कोई लकड़ी...
ऊपर से साबुत दिखती
मग़र भीतर से तमाम खोखली...
वज़न नहीं उठा पाती
भुरभुरा कर टूट जाती...
तुम भी
ज़रा-सी तखलीफ़ में भरभरा जाते हो
बिखर कर
अपने ही ऊपर आ जाते हो
रुआंसे हो जाते हो...
---- सुरेन्द्र भसीन
तुम
भीतर तक
दुख पाए हुए हो
जैसे दीमक खायी कोई लकड़ी...
ऊपर से साबुत दिखती
मग़र भीतर से तमाम खोखली...
वज़न नहीं उठा पाती
भुरभुरा कर टूट जाती...
तुम भी
ज़रा-सी तखलीफ़ में भरभरा जाते हो
बिखर कर
अपने ही ऊपर आ जाते हो
रुआंसे हो जाते हो...
---- सुरेन्द्र भसीन
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