मरना तो
होता है हरेक को बारबार
चीख-चीख कर मरो या
मरलो बेआवाज़
मरो अपना अकेले या
मरो लोगों के ही लिए
लोगों के साथ...
अब कोई
कहर नहीं टूटता
न होती है कांच टूटने की तीखी ध्यानाकर्षक आवाज...
क्योंकि बाकी सब
अपनी जरूरतों-स्वार्थों में
मर चुके हैं पहले ही
कई कई बार...।
------- सुरेन्द्र भसीन. मरने से पहले
होता है हरेक को बारबार
चीख-चीख कर मरो या
मरलो बेआवाज़
मरो अपना अकेले या
मरो लोगों के ही लिए
लोगों के साथ...
अब कोई
कहर नहीं टूटता
न होती है कांच टूटने की तीखी ध्यानाकर्षक आवाज...
क्योंकि बाकी सब
अपनी जरूरतों-स्वार्थों में
मर चुके हैं पहले ही
कई कई बार...।
------- सुरेन्द्र भसीन. मरने से पहले
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