वैमनस्य
हमारी स्वयं की
मिट्टीकी, गुस्से की
गठानें ही होती हैं वैमनस्य।
न जानें कैसी रूकावटें,सलवटें हैं
यह हमारे व्यक्तित्व की
जो सरल जीवन प्रवाह को
करती हैं अवरुद्ध!
और प्रेम ऊष्मा पाकर
हो जाती हैं विभोर!
जैसे घी या बर्फ पिघलता ही जाता है
ताप पा..पाकर।
प्रेम प्रवाह के आवेग से ही
वर्षों से रुकी सम्बन्धों की नदियाँ
फिर ...फिर बह पाती हैं
वरना दुरुह चट्टाने
ही हो जाती हैं।
------ सुरेन्द्र भसीन
हमारी स्वयं की
मिट्टीकी, गुस्से की
गठानें ही होती हैं वैमनस्य।
न जानें कैसी रूकावटें,सलवटें हैं
यह हमारे व्यक्तित्व की
जो सरल जीवन प्रवाह को
करती हैं अवरुद्ध!
और प्रेम ऊष्मा पाकर
हो जाती हैं विभोर!
जैसे घी या बर्फ पिघलता ही जाता है
ताप पा..पाकर।
प्रेम प्रवाह के आवेग से ही
वर्षों से रुकी सम्बन्धों की नदियाँ
फिर ...फिर बह पाती हैं
वरना दुरुह चट्टाने
ही हो जाती हैं।
------ सुरेन्द्र भसीन
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