नालायक फल
वृक्ष पर डाल से
लगा हुआ एक नालायक फल
बड़ा कसमसा रहा था
पकने से पहले
डाल से छूटकर
धरती पर आना चाह रहा था
ऊपर से धरती की रौनक,
चहल-पहल उसे भरमाती थी,
धरती की भाग-दौड़, चकाचौंध उसे आकर्षित करती ही जाती थी।
वह बार-बार ईश्वर से
जल्दी नीचे भेजने की जिद करता और
भगवान उसे समझाते कि
अभी तुम बच्चे और कच्चे हो
नीचे गिरने की चोट तुम
सह न पाओगे
गिरते ही, दाना-दाना होकर टूट-बिखर जाओगे
तनिक सब्र करो
रूप अपना संवरने दो
देह अपनी पकने दो।
एक दिन स्वयं माली आयेगा
तुम्हें डाल से तोड़ेगा,
पोंछेगा, पुचकारेगा
डलिया में रखकर ले जायेगा ,
लारी में घुमायेगा,
बाजार में रेहड़ी पर टहलायेगा,
प्यार से कोई गृहणी के संग किसी के घर जाओगे,
परिवार तुम्हें बांटेगा, खायेगा
और यूँ तुम्हारा जीवन पूरा हो जायेगा।
मगर उसकी तड़प और बेचैनी देखकर
भगवान ने उसे वक़्त से पहले
नीचे टपका दिया
धड़ाम से गिरते ही चोट लगी
शरीर पर जख्म और गुमड़ आ गया
हिलडुल न सका,
पत्ते, मिट्टी, पत्थर उसपर लगातार पड़ने लगे
कीचड़ में वह सनता गया
और फिर एक दिन सड़ गल के
किसी जानवर के पाँव के नीचे आ गया।
कुछ न मिला
भ्र्रमित था वह
भ्र्रम -सा जीवन पा गया।
-------- सुरेन्द्र भसीन
वृक्ष पर डाल से
लगा हुआ एक नालायक फल
बड़ा कसमसा रहा था
पकने से पहले
डाल से छूटकर
धरती पर आना चाह रहा था
ऊपर से धरती की रौनक,
चहल-पहल उसे भरमाती थी,
धरती की भाग-दौड़, चकाचौंध उसे आकर्षित करती ही जाती थी।
वह बार-बार ईश्वर से
जल्दी नीचे भेजने की जिद करता और
भगवान उसे समझाते कि
अभी तुम बच्चे और कच्चे हो
नीचे गिरने की चोट तुम
सह न पाओगे
गिरते ही, दाना-दाना होकर टूट-बिखर जाओगे
तनिक सब्र करो
रूप अपना संवरने दो
देह अपनी पकने दो।
एक दिन स्वयं माली आयेगा
तुम्हें डाल से तोड़ेगा,
पोंछेगा, पुचकारेगा
डलिया में रखकर ले जायेगा ,
लारी में घुमायेगा,
बाजार में रेहड़ी पर टहलायेगा,
प्यार से कोई गृहणी के संग किसी के घर जाओगे,
परिवार तुम्हें बांटेगा, खायेगा
और यूँ तुम्हारा जीवन पूरा हो जायेगा।
मगर उसकी तड़प और बेचैनी देखकर
भगवान ने उसे वक़्त से पहले
नीचे टपका दिया
धड़ाम से गिरते ही चोट लगी
शरीर पर जख्म और गुमड़ आ गया
हिलडुल न सका,
पत्ते, मिट्टी, पत्थर उसपर लगातार पड़ने लगे
कीचड़ में वह सनता गया
और फिर एक दिन सड़ गल के
किसी जानवर के पाँव के नीचे आ गया।
कुछ न मिला
भ्र्रमित था वह
भ्र्रम -सा जीवन पा गया।
-------- सुरेन्द्र भसीन
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