Wednesday, December 27, 2017

सच का भूत

सुबह
सच ने कहा कि
आज मैं तुम पर आया हूँ
सारा दिन तुममें ही रहूंगा
और आज तुम वही बोलोगे
जो मैं तुमसे कहूँगा....

अब सच तो पुरानी ऐतिहासिक वस्तु है
आजकल के आधुनिक युग में सच कौन कहता है
सच तो आजकल किताबों में रहे यही अच्छा रहता है  ....
अब सोचो
मैं सच किसे कहूंगा -
बीवी को, पड़ोसी को या बॉस को ?           
और इन्हें सच कहकर क्या मैं
जाकर किसी जंगल या पहाड़ पर रहूंगा ?
चलो मैं तो कह भी दूँ
मगर क्या वह सह लेंगे -
कि पत्नी तुम सुंदर नहीं हो,
कि पड़ोसी तुम कमीने और जल्लाद हो,
कि मालिक तुम  मुझ निरीह बेजुबान पक्षी को
अपनी नौकरी में फंसाने वाले
काले-कलूटे कंजूस सय्याद हो.....!
हे सच!
तुम तो जीवन में
मुझपर एक दिन ही आओगे
मगर सदियों के लिए मेरा
बेड़ा गर्क कर जाओगे।
अच्छा हो,
तुम मुझ गरीब को न सताओ
और जहां से चले थे
वहीं लौट जाओ !
       --------- सुरेन्द्र भसीन


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