Monday, December 4, 2017

ये चूहे महंगाई के

ये चूहे महंगाई के
रूई की रजाई को
हर साल ही
कुतर जाते हैं मंहगाई के चूहे
चाहे कितनी भी संभालो
नयी बनवानी ही पड़ती है हरबार
तेज चलती हवाएं या
टमाटर,आलू,प्याज के भाव
भीन्ध जाते हैं
बजट को/बदन को।
मजदूर की मजदूरी को
उसकी मुट्ठी में ही सिकोड़ जाते हैं
उसकी सुविधाएं कुतर जाते हैं
महंगाई के ये चूहे।
------- सुरेन्द्र भसीन

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