ये चूहे महंगाई के
रूई की रजाई को
हर साल ही
कुतर जाते हैं मंहगाई के चूहे
चाहे कितनी भी संभालो
नयी बनवानी ही पड़ती है हरबार
तेज चलती हवाएं या
टमाटर,आलू,प्याज के भाव
भीन्ध जाते हैं
बजट को/बदन को।
मजदूर की मजदूरी को
उसकी मुट्ठी में ही सिकोड़ जाते हैं
उसकी सुविधाएं कुतर जाते हैं
महंगाई के ये चूहे।
------- सुरेन्द्र भसीन
हर साल ही
कुतर जाते हैं मंहगाई के चूहे
चाहे कितनी भी संभालो
नयी बनवानी ही पड़ती है हरबार
तेज चलती हवाएं या
टमाटर,आलू,प्याज के भाव
भीन्ध जाते हैं
बजट को/बदन को।
मजदूर की मजदूरी को
उसकी मुट्ठी में ही सिकोड़ जाते हैं
उसकी सुविधाएं कुतर जाते हैं
महंगाई के ये चूहे।
------- सुरेन्द्र भसीन
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