यूँ ही रह जाने दो इन चुप्पियों को
चाहत की न कोई आवाज़ करो
न कुछ पूछो हमसे
न कोई अपनी बात करो
बह जाने दो इनको हमपर से
लफ्जों की न कोई आवाज़ करो....
ये बेलगाम बातें
पहुँचाती नहीं कभी ठिकाने तक
फिर हम क्यों इनके आघात सहे
शोर ही भरता जाना है कानों में तो
क्यों कोई आवाज़ करे....
यूँ ही रह जाने दो इन चुप्पियों को
लफ्जों की न कोई आवाज़ करें ?
----------- सुरेन्द्र भसीन
चाहत की न कोई आवाज़ करो
न कुछ पूछो हमसे
न कोई अपनी बात करो
बह जाने दो इनको हमपर से
लफ्जों की न कोई आवाज़ करो....
ये बेलगाम बातें
पहुँचाती नहीं कभी ठिकाने तक
फिर हम क्यों इनके आघात सहे
शोर ही भरता जाना है कानों में तो
क्यों कोई आवाज़ करे....
यूँ ही रह जाने दो इन चुप्पियों को
लफ्जों की न कोई आवाज़ करें ?
----------- सुरेन्द्र भसीन
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