बच्चों को खेलते देखो तो
उनमें बड़े नज़र आते हैं
बचपन में भी बड़ों की तरह
प्रतियोगिता करते
छीनते-झपटते....
अगर बड़ों को व्यवहार करते देखो तो
उनमें बच्चे उभर आते हैं
टूटती चीजों पर बिसूरते और
बड़े होकर भी
बात-बात पर रूठते, नाराज होते
मनुव्वल की इंतजार करते।
सारी उम्रह शिक्षा के बाद भी
हम बड़े नहीं हो पाते/होना चाहते
हम बच्चे थे
हम बच्चें हैं
और हम बचपना छोड़ना नहीं चाहते।
------------- सुरेन्द्र भसीन
उनमें बड़े नज़र आते हैं
बचपन में भी बड़ों की तरह
प्रतियोगिता करते
छीनते-झपटते....
अगर बड़ों को व्यवहार करते देखो तो
उनमें बच्चे उभर आते हैं
टूटती चीजों पर बिसूरते और
बड़े होकर भी
बात-बात पर रूठते, नाराज होते
मनुव्वल की इंतजार करते।
सारी उम्रह शिक्षा के बाद भी
हम बड़े नहीं हो पाते/होना चाहते
हम बच्चे थे
हम बच्चें हैं
और हम बचपना छोड़ना नहीं चाहते।
------------- सुरेन्द्र भसीन
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