Monday, September 18, 2017

बार बार..लगातार...

बार बार..लगातार...  

मैं 
तारकोल हूँ ?
रोड़ी-बजरी हूँ या 
कुछ और.... ?
यह मुझे तो नहीं मालूम मगर 
हर बार मैं ही राह बना दिया जाता हूँ.... 
झूठे वायदों,तरक्की व योजनाओं के 
भारी-भरकम ट्रकों की राहों की  
सड़क बना बिछा दिया जाता हूँ। 

मुझसे होकर ही 
वे गुजरते तो हैं 
मगर पता नहीं वे कहाँ जाते हैं ?
कम से कम मेरे काम तो 
वे नहीं आते हैं। 

जब-जब मैं 
टूट-फूट जाता हूँ,
उखड़ने लगता हूँ तब  
कुछ और मेरे जैसे आ जाते हैं,
मिला दिए जाते हैं-
रोड़ी बनाकर,बजरी बनाकर, तारकोल मिलाकर 
तरक्की, वायदों या योजनाओं की राहों में... 

सोचता हूँ मैं 
कि मेरे लिए यह समूचा वक़्त ही काला है 
या मैं काला ही जन्मा हूँ ?
जो खुद न कहीं आता हूँ 
न कहीं जाता हूँ 
मगर दूसरों के लिए सदा 
सड़क बना, 
उनकी सुविधा बना, 
तलुवों में बिछा दिया जाता हूँ 
बार बार... लगातार..... । 
             --------       सुरेन्द्र भसीन   














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