वो एक
जब भी, जब भी
पासा फैंकता हूँ मैं
कभी एक नहीं आता है..... ?
निन्यानवें पर
खड़ा हूँ मैं।
मगर एक नहीं आता है..... ?
मुझे उस एक का ही इंतज़ार है मगर
वो एक नहीं आता है।
वैसे तो
सारी उम्रह पासे पर
एक -एक ही आता रहा
और मैं नासमझ उस एक से ही लड़ता रहा....
और एक-एक करके ही तो पहुंचा हूँ इस निन्यानवें तक
मगर तब मैं एक के महत्व को समझ नहीं पाता था।
उस समय के मेरे रास्ते
सीढ़ी और साँप से भरे रहे.....
दो,तीन,चार, पांच और छह
कभी न मिला मुझे
साँपों से ही पड़ा वास्ता मेरा
कभी भी सीढ़ी पर न चढ़ सका.....
सीढ़ी के वास्ते मैंने
अपने आपको जहरीले सांपों से भी डसवाया
मगर फिर भी मेरे हिस्से में एक और सिर्फ एक ही आया।
अब उम्रह के इस अंत में
मैं समझ गया हूँ कि
जब तक वो एक
पहचान में नहीं आता है
जीव अनेक नहीं हो पाता है.....
.... लेकिन अब कैसा भय.....
आँखें अब मुंदी जा रही हैं....
अब किसी साँप से बचाव नहीं
और किसी सीढ़ी का लगाव नहीं....
अब तो
उस एक के आते ही
पूरे सौ हो जायेंगे/मेरी गोटी पुग जायेगी
अब तो
केवल उस एक का ही इंतज़ार है
कभी भी वो आयेगा
और मुझे
अनेक
कर
जायेगा.....
----------- सुरेन्द्र भसीन
जब भी, जब भी
पासा फैंकता हूँ मैं
कभी एक नहीं आता है..... ?
निन्यानवें पर
खड़ा हूँ मैं।
मगर एक नहीं आता है..... ?
मुझे उस एक का ही इंतज़ार है मगर
वो एक नहीं आता है।
वैसे तो
सारी उम्रह पासे पर
एक -एक ही आता रहा
और मैं नासमझ उस एक से ही लड़ता रहा....
और एक-एक करके ही तो पहुंचा हूँ इस निन्यानवें तक
मगर तब मैं एक के महत्व को समझ नहीं पाता था।
उस समय के मेरे रास्ते
सीढ़ी और साँप से भरे रहे.....
दो,तीन,चार, पांच और छह
कभी न मिला मुझे
साँपों से ही पड़ा वास्ता मेरा
कभी भी सीढ़ी पर न चढ़ सका.....
सीढ़ी के वास्ते मैंने
अपने आपको जहरीले सांपों से भी डसवाया
मगर फिर भी मेरे हिस्से में एक और सिर्फ एक ही आया।
अब उम्रह के इस अंत में
मैं समझ गया हूँ कि
जब तक वो एक
पहचान में नहीं आता है
जीव अनेक नहीं हो पाता है.....
.... लेकिन अब कैसा भय.....
आँखें अब मुंदी जा रही हैं....
अब किसी साँप से बचाव नहीं
और किसी सीढ़ी का लगाव नहीं....
अब तो
उस एक के आते ही
पूरे सौ हो जायेंगे/मेरी गोटी पुग जायेगी
अब तो
केवल उस एक का ही इंतज़ार है
कभी भी वो आयेगा
और मुझे
अनेक
कर
जायेगा.....
----------- सुरेन्द्र भसीन
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