Friday, March 11, 2016

विरोधाभास

समझ नहीं आता 
जीवन कैसे-कैसे विरोधाभास दिखाता है 
और किधर से किधर को मुड़कर निकल जाता है 
कभी पानी में पत्थर 
और कभी पत्थरों से पानी निकल आता है। 

रुकता है पानी जहां 
सम्बन्धों का, हालातों का, मवाद का कीचड़ जमा हो जाता है 
और क्रोध का उफनता पानी नहीं
कीचड़ बना रुका पानी ही सम्बन्धों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है 

नीर हो या नाता हो 
कल-कल करता शीतल-शीतल 
बहता हुआ ही 
सदा भाता है। 
                    -------------                -सुरेन्द्र भसीन 


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