संतोष
सभी कुछ
पाया नहीं जा सकता
सभी कुछ
खाया नहीं जा सकता
सभी जगह जाया नहीं जा सकता....
सभी कुछ होता तो है मगर
मिलता नहीं है किसी को
जैसे रेल की समानांतर दो पटरियां....
लगातार होती
चलती
मगर कहीं न मिलती
जैसे....
सभी कुछ ।
------------ -सुरेन्द्र भसीन
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