Saturday, March 12, 2016

संतोष

संतोष 

सभी कुछ 
पाया नहीं जा सकता 
सभी कुछ 
खाया नहीं जा सकता 
सभी जगह जाया नहीं जा सकता.... 

सभी कुछ होता तो है मगर 
मिलता नहीं है किसी को 
जैसे रेल की समानांतर दो पटरियां.... 

लगातार होती
चलती 
मगर कहीं न मिलती 
जैसे....  
सभी कुछ 
          ------------        -सुरेन्द्र भसीन 








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