SURINDER BHASIN
Sunday, November 15, 2015
वाह ! वाह !
कितना
सुख, चैन, आराम है
नग्न हो जाने में,
प्रकृति के पास लौट जाने में,
उन्मुक्त गगन के पंक्षी हो जाने में,
बेपरवाह हो जाने में,
स्वछंद हो जाने में
वाह ! वाह !
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