बजाने को कलाकार ही नहीं
साज भी होता है आतुर बजने को
साज को छेड़ो अगर सजीले अहसास से
तो सुर के पंछी
पंखों को लगते हैँ फ़ैलाने
दूरियों की तो बात ही क्या है -
उँगलियों के पोरों से आत्मा तक को लगते हैं पिघलाने।
समुद्र में नाव का माझी हो या
किसान के मन में उगता अहसास याकि
गौरी के मन में पिया मिलन की आस
साज ही तो हैं छेड़ो
तो एक ही सुर में लगते हैं गाने।
साज भी होता है आतुर बजने को
साज को छेड़ो अगर सजीले अहसास से
तो सुर के पंछी
पंखों को लगते हैँ फ़ैलाने
दूरियों की तो बात ही क्या है -
उँगलियों के पोरों से आत्मा तक को लगते हैं पिघलाने।
समुद्र में नाव का माझी हो या
किसान के मन में उगता अहसास याकि
गौरी के मन में पिया मिलन की आस
साज ही तो हैं छेड़ो
तो एक ही सुर में लगते हैं गाने।
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