Saturday, February 23, 2019

जीवन/हताशा

उम्र के
इस पड़ाव तक आते-आते
मैं सोचने लगा हूँ कि
मैंने जीवन भर क्या खोया ? क्या पाया ?
मेरे सपने, मेरे अपने
मेरे सामने से निकलते गये
और मैं मुठ्ठियाँ भींचे रहा
मग़र उनके मन तक को कभी
छू न पाया।
क्या रही हस्ती मेरी?
और क्यों मैं एक काले भौरें की तरह
चाहतों के रंग-बिरंगे फूलों पर
मंडराता रहा उनपर कभी बैठ न पाया?
क्यों मैं वह कर न सका
जो मैंने जीवन भर करना चाहा?
क्यों जब मुझे होश आया तो
मैंने सब कुछ गंवा कर
अपने आपको इस चारपायी पर पाया?

अब इस चारपायी के बाद तो
चार कंधे ही मुझे आगे ले जायेंगे
मेरे इस तारकोली जीवन से
मेरा पीछा छुड़ाने के लिए
और नवजीवन दिलाने के लिए...
       -------        सुरेन्द्र भसीन

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