बादल के पार
हल्का होकर
हवा के साथ-साथ
उमड़ते-घुमड़ते
मैं थकान व चिन्ता के पहाड़
दूर, नीचे कहीं छोड़ आया हूँ ...
अब मेरे सामने
सारा नीला आकाश है मिलने के लिए
सदा-सदा के लिए
उसमें घुलने के लिए।
--------- सुरेन्द्र भसीन
हल्का होकर
हवा के साथ-साथ
उमड़ते-घुमड़ते
मैं थकान व चिन्ता के पहाड़
दूर, नीचे कहीं छोड़ आया हूँ ...
अब मेरे सामने
सारा नीला आकाश है मिलने के लिए
सदा-सदा के लिए
उसमें घुलने के लिए।
--------- सुरेन्द्र भसीन
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