Saturday, May 28, 2016

बादल के पार

बादल के पार

हल्का होकर
हवा के साथ-साथ
उमड़ते-घुमड़ते
मैं थकान व चिन्ता के पहाड़
दूर, नीचे कहीं छोड़ आया हूँ ...

अब मेरे सामने
सारा नीला आकाश है मिलने के लिए
सदा-सदा के लिए
उसमें घुलने के लिए।
     ---------     सुरेन्द्र भसीन 

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