Friday, February 19, 2016

ग़ज़ल -३

अपने कलेजे में दर्द दफ़ना रखा है
मैंने सीने को कब्रगाह बना रखा है। 

न जाने कौन-कौन सा गम पड़ा है यहाँ 
अपनी ही याद को कफ़न ओढ़ा रखा है। 

गम भी झर-झर कर बहता हो जहाँ 
वहीं  प्रेम का अलाव सुलगा रखा है। 

चाहत, राहें, नदियाँ सूख जाती हैं जहाँ पर 
वहीं पर मैंने हसरतों का बाग़ बसा रखा है। 

तक़दीर के कुछ मायने नहीं  हैं मेरे लिये 
मैंने तो किस्मत को अंगूठा दिखा रखा है। 

कौन करेगा कुफ्र मुझ से प्रेम करने का 
मैंने तो आईनों को मुँह चिढ़ा रखा है। 
                 -----------                           - सुरेन्द्र भसीन 






No comments:

Post a Comment