Sunday, November 15, 2015

वाह ! वाह !



कितना 
सुख, चैन, आराम  है 
नग्न हो जाने में,
प्रकृति के पास लौट जाने में,
उन्मुक्त गगन के पंक्षी हो जाने में,
बेपरवाह हो जाने में,
स्वछंद हो जाने में 
वाह ! वाह !

Sunday, November 1, 2015

साज का संदेश

बजाने को कलाकार ही नहीं 
साज भी होता है आतुर बजने को 
साज को छेड़ो अगर सजीले अहसास से 
तो सुर के पंछी 
पंखों को लगते हैँ फ़ैलाने 
दूरियों की तो बात ही क्या है -
उँगलियों के पोरों से आत्मा तक को लगते हैं पिघलाने।  

समुद्र में नाव का माझी हो या 
किसान के मन में उगता अहसास याकि 
गौरी के मन में पिया मिलन की आस 
साज ही तो हैं छेड़ो 
तो एक ही सुर में लगते हैं गाने।   

प्रार्थना

हे प्रभु !
हजारों भूलों के शूलों में 
मुझे एक फूल दो। 

मैं 
तपते रेगिस्तानों में हूँ,
पथरीली चट्टानों में हूँ। 

मेरी 
भूलों को भूलो 
और मुझे एक फूल दो। 


सच

चाहे एक 
छोटा-सा ही सच लो 
और उसे 
और किसी से नहीं 
पहले अपने से ही बोलो।

सिर्फ इतने से ही 
तुम्हारी व्यथाओं के  बड़े-बड़े पहाड़ दरकने लगते हैं। 

सदियों से रुके 
मकतूल डाले झूठ के जहाज 
सच की हवा के हल्के झोंके से ही 
सरकने लगते हैँ।