Monday, April 27, 2015

बीतता बचपन

अपनी 
गर्म चाय की प्याली में 
बिस्कुट गिराकर 
तुम फिर लाचार असहाय से 
इधर उधर देखने लगे हो 
कि कोई आये और तुम्हें इस बेस्वाद होती चाय 
से निजात दिलवाये। 
और लो तुम्हारे  ननहे  ने 
 चमच्च से,चाय  से  बिस्कुट निकालकर 
फिर  से कर  दी  है  सम्बन्धों की लकीर  लम्बी ,
मगर तुम समझ नहीं  रहे  हो  मेरे  पापा 
कि  चाय  में  बिस्कुट गिराने  की
अब  तुम्हारी  उम्रः नहीं  रही  है 
और चाय  से  बिस्कुट निकालते निकालते 
बुढ़ाने लगी हैं  उँगलियाँ 
तुम्हारे  नन्हे  की।   

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