अपनी
गर्म चाय की प्याली में
बिस्कुट गिराकर
तुम फिर लाचार असहाय से
इधर उधर देखने लगे हो
कि कोई आये और तुम्हें इस बेस्वाद होती चाय
से निजात दिलवाये।
और लो तुम्हारे ननहे ने
चमच्च से,चाय से बिस्कुट निकालकर
फिर से कर दी है सम्बन्धों की लकीर लम्बी ,
मगर तुम समझ नहीं रहे हो मेरे पापा
कि चाय में बिस्कुट गिराने की
अब तुम्हारी उम्रः नहीं रही है
और चाय से बिस्कुट निकालते निकालते
बुढ़ाने लगी हैं उँगलियाँ
तुम्हारे नन्हे की।
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