जोग
मैं
कैसे कहूॅं
कि तुम बरसो मुझपर झमाझम ?
किसी के कहने भर से
कोई मेघ भला
थोड़े ही बरसता है?
मैं
कैसे कहूॅं
कि तुम मुझे आशीश दो ,वरदान दो
भला किसी के कहने - चाहने भर से
कोई धर्मात्मा -परमात्मा थोड़े ही पिघलता है ?
मुझे तो भावना में
खड़े हो जाना है
निर्वस्त्र -स्नाथ
और बाकी सब कुछ तो
स्वयं ही हो जाना है।
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