Saturday, June 8, 2019

वे
सभी अपने हैं मग़र
अभी दुश्मन के बरगलाए हुए हैं
और हम उन्हीं अपनों से ख़ौफ़ खाये हुए हैं।
हाँ!वे आते हैं झुंड के झुंड
हाथों में पत्थर लिए-लिए और
हम अपनी ही संगीनें अपने
सीने तले दबाये,थरथराये
उन्हें ये खोखले आदेश मिमियाते हैं-
कि वे लौट जाएँ, हमारी संगीनों के साये
में क्यों बार-बार आते हैं।
हम खून खराबा नहीं चाहते हैं।
हमें मालूम है कि वे किसी मजबूरी के
सताये हुए हैं
इसलिए हाथों में पत्थर लिए संगीनों के सामने
अपना सीना अड़ाये हुए हैं और इस समय
गैरों के बरगलाए हुए हैं।
       -------      सुरेन्द्र भसीन

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