रात जब मैं
सोने को होता हूँ
तो दिन भर हुए पंगों के लिए
बड़ा रोता हूँ।
समझ नहीं आता है कि
लोग मुझसे लड़ते हैं याकि
मैं ही उनसे भिड़ जाता हूँ या
अपनी बदकिस्मती का मारा सदा
सच बोलने की सजा पाता हूँ....
मैं कुछ बोल दूँ तो
किसी को नहीं सुहाता है और
न भी कुछ कहूँ तो भी
झगड़ा हो जाता है...
इन दिनों आत्मविश्वास तो मेरा टूट ही गया है
मुझसे मेरा भाग्य भी रूठ गया है...
अबतो लगता है
मैं किसी काम का नहीं - निपट गंवार हूँ
मुझ पर शनि नहीं
मैं शनि पर सवार हूँ
मेरा क्या होगा?
समझ नहीं पाता हूँ...
इसी चिंता में दिनोंदिन घुला जाता हूँ...
कोई बताये मैं किस देवता को मनाऊँ?
और अपनी बिगड़ी बनाऊँ।
------- सुरेन्द्र भसीन
सोने को होता हूँ
तो दिन भर हुए पंगों के लिए
बड़ा रोता हूँ।
समझ नहीं आता है कि
लोग मुझसे लड़ते हैं याकि
मैं ही उनसे भिड़ जाता हूँ या
अपनी बदकिस्मती का मारा सदा
सच बोलने की सजा पाता हूँ....
मैं कुछ बोल दूँ तो
किसी को नहीं सुहाता है और
न भी कुछ कहूँ तो भी
झगड़ा हो जाता है...
इन दिनों आत्मविश्वास तो मेरा टूट ही गया है
मुझसे मेरा भाग्य भी रूठ गया है...
अबतो लगता है
मैं किसी काम का नहीं - निपट गंवार हूँ
मुझ पर शनि नहीं
मैं शनि पर सवार हूँ
मेरा क्या होगा?
समझ नहीं पाता हूँ...
इसी चिंता में दिनोंदिन घुला जाता हूँ...
कोई बताये मैं किस देवता को मनाऊँ?
और अपनी बिगड़ी बनाऊँ।
------- सुरेन्द्र भसीन
No comments:
Post a Comment