Wednesday, April 10, 2019

चुप्पी की बात

तुमने!
अपनी हर बात पर
हर हरकत पर
पहले जो जबरदस्ती चुप करा दिया मुझे
कभी कुछ बोलने ही नहीं दिया था कभी
तो अब जब
मैं बिल्कुल ही चुप हो गई हूँ तो
तुम्ही कहने लगे हो -
'कहो!कुछ कहो!
तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?
तुम्हारी खामोशी बड़ी भयावह है
बड़ा डराती है...
भीतर तक मुझे सूना वीरान...खण्डहर कर जाती है।'
तुम्हारी हर उस कारगुजारी का
यातना का, प्रताड़ना का
जो तुमने अपनी सुविधा, ऐय्याशी के लिए
दागी/तोड़ी थी मुझपर का
सिर्फ खामोशी ही मेरा जवाब है अब तक।
घर में अब सिर्फ
कुर्सी-मेज घसीटने की,
खड़खड़ाते बर्तनों की आवाज़ें ही बचीं हैं हमारे दरमियाँ...
कोई बच्चा नहीं,संगीत नहीं,हंसना, कलरव
ऊँची आवाज़ में बात तो बिल्कुल भी नहीं...
एक वीरान जंगल और उसमें
सूखा कुआँ बचा है अब बाकि
उसमें रहते हम, सिर्फ हम...
अलग-अलग
एक-दूजे को ढोते...
मन मन के आँसू रोते...
   ------       सुरेन्द्र भसीन


हमारे पूर्वज
अगर बृक्ष के तना और
तनों की टहनियाँ हैं तो
हम उनपर उगते
हरे-नन्हें कोमल पत्ते, फूल और फल।
हमारी परम्पराएं
हमारी पूर्वजों की कमाई हैं
जो हमने वसीहत में पायी है
यह उनकी वह सोच है जो
हमारी आदत में उतर आयी है
जो उन्होंने
अलिखित रूप में हम तक पँहुचाई है
हम जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं
उनमें कुछ अपना कुछ नया जड़ते हैं
...और  यूँ हम आगे बढ़ते हैं।

Tuesday, April 9, 2019

निराशा/हताशा

रात जब मैं
सोने को होता हूँ
तो दिन भर हुए पंगों के लिए
बड़ा रोता हूँ।
समझ नहीं आता है कि
लोग मुझसे लड़ते हैं याकि
मैं ही उनसे भिड़ जाता हूँ या
अपनी बदकिस्मती का मारा सदा
सच बोलने की सजा पाता हूँ....
मैं कुछ बोल दूँ तो
किसी को नहीं सुहाता है और
न भी कुछ कहूँ तो भी
झगड़ा हो जाता है...
इन दिनों आत्मविश्वास तो मेरा टूट ही गया है
मुझसे मेरा भाग्य भी रूठ गया है...
अबतो लगता है
मैं किसी काम का नहीं - निपट गंवार हूँ
मुझ पर शनि नहीं
मैं शनि पर सवार हूँ
मेरा क्या होगा?
समझ नहीं पाता हूँ...
इसी चिंता में दिनोंदिन घुला जाता हूँ...
कोई बताये मैं किस देवता को मनाऊँ?
और अपनी बिगड़ी बनाऊँ।
          -------      सुरेन्द्र भसीन