किसी
मकड़े को देखो
कैसे अपने ही बुने जाल में उलझा
कसमसाता है मग़र लालच की
बुनी तानो से छूट नहीं पाता है
बिल्कुल वैसे ही रिश्तों के तानों
में जकड़ा इंसान भी विवश छटपटा रहा है
मग़र छूट नहीं पा रहा है
यह जो सामाजिक ताने हैं
समय सोखती-उम्र चूसती हैं सदा...
इसमें घिरा इंसान
कितना इनसे सुख पा रहा है या
दुखी हुआ जा रहा है...
------- सुरेन्द्र भसीन
मकड़े को देखो
कैसे अपने ही बुने जाल में उलझा
कसमसाता है मग़र लालच की
बुनी तानो से छूट नहीं पाता है
बिल्कुल वैसे ही रिश्तों के तानों
में जकड़ा इंसान भी विवश छटपटा रहा है
मग़र छूट नहीं पा रहा है
यह जो सामाजिक ताने हैं
समय सोखती-उम्र चूसती हैं सदा...
इसमें घिरा इंसान
कितना इनसे सुख पा रहा है या
दुखी हुआ जा रहा है...
------- सुरेन्द्र भसीन
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