Friday, March 29, 2019

मकड़जाल

किसी
मकड़े को देखो
कैसे अपने ही बुने जाल में उलझा
कसमसाता है मग़र लालच की
बुनी तानो से छूट नहीं पाता है
बिल्कुल वैसे ही रिश्तों के तानों
में जकड़ा इंसान भी विवश छटपटा रहा है
मग़र छूट नहीं पा रहा है
यह जो सामाजिक ताने हैं
समय सोखती-उम्र चूसती हैं सदा...
इसमें घिरा इंसान
कितना इनसे सुख पा रहा है या
दुखी हुआ जा रहा है...
      -------     सुरेन्द्र भसीन

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