सच में
सच के लिए
सब चुप हैं
कुछ बोलने से पहले ही
झूठ है... झूठा है के शोर के
पहाड़ के पहाड़ खड़े हो जाते हैं
और कुछ भी कहने से पहले-
सच बोलने से पहले
सभी अपनों से ही पिट जाते हैं।
न जाने लोग सच सुन हज़म क्यों नहीं कर पाते हैं?
कुछ कहने को उठो समाज में तो
कुर्ते फाड़ दिये जाते हैं या
काली स्याही से चेहरे पोत दिये जाते हैं
और सच कहो अपनों में तो
सदियों के अपने
क्षण में बेगाने हो जाते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
सच के लिए
सब चुप हैं
कुछ बोलने से पहले ही
झूठ है... झूठा है के शोर के
पहाड़ के पहाड़ खड़े हो जाते हैं
और कुछ भी कहने से पहले-
सच बोलने से पहले
सभी अपनों से ही पिट जाते हैं।
न जाने लोग सच सुन हज़म क्यों नहीं कर पाते हैं?
कुछ कहने को उठो समाज में तो
कुर्ते फाड़ दिये जाते हैं या
काली स्याही से चेहरे पोत दिये जाते हैं
और सच कहो अपनों में तो
सदियों के अपने
क्षण में बेगाने हो जाते हैं।
------- सुरेन्द्र भसीन
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