यूँ
ये दरख़्त नहीं
भक्त हैं ईश्वर के
खड़े सनाथ
शांत चित्त नमन पूजा में
ईश्वरीय भजन में हिलते-डुलते हों जैसे...
और ये पहाड़ी श्रखंलाएँ-
शांत पड़ी देह ऋषियों की,पूर्वजों की
हमें निहारती याकि
समय का मुस्तैद कोई चौकीदार जैसे
धरा को निहारता अपनी निर्निमेष निगाहों से...
पक्षियों का कलरव
जानवरों की हुंकारें, हिनहिनाहटें, डकारें...
जल में फ़िरते
विभिन्न प्रकार के
रँगीले,सपनीले जलचर
और पृथ्वी का अनन्त विस्तार
सबकुछ
चमत्कृत, आह्लादित करता
एक खुली आँख का स्वपन
शहद-सी मीठी रसीली बून्द-सा
टपकने को
मात्र !
क्षण !
------ सुरेन्द्र भसीन
ये दरख़्त नहीं
भक्त हैं ईश्वर के
खड़े सनाथ
शांत चित्त नमन पूजा में
ईश्वरीय भजन में हिलते-डुलते हों जैसे...
और ये पहाड़ी श्रखंलाएँ-
शांत पड़ी देह ऋषियों की,पूर्वजों की
हमें निहारती याकि
समय का मुस्तैद कोई चौकीदार जैसे
धरा को निहारता अपनी निर्निमेष निगाहों से...
पक्षियों का कलरव
जानवरों की हुंकारें, हिनहिनाहटें, डकारें...
जल में फ़िरते
विभिन्न प्रकार के
रँगीले,सपनीले जलचर
और पृथ्वी का अनन्त विस्तार
सबकुछ
चमत्कृत, आह्लादित करता
एक खुली आँख का स्वपन
शहद-सी मीठी रसीली बून्द-सा
टपकने को
मात्र !
क्षण !
------ सुरेन्द्र भसीन