Sunday, March 29, 2015

ज्ञान

तेज धूप भी तो 
सर्द बर्फ का छिटकता धवल रुप ही है 
जो उसपर पड़ती है, 
उसे पिघलती है, अंत में 
उसे वाष्प बना -  अपने साथ 
समा ले जाती है। 
वैसे, ऐसे ही तो 
आत्मा  की परमात्मा तक 
गति हो  जाती है।        

                  -------                   

Wednesday, March 18, 2015

जोग

मैं
कैसे कहूॅं
कि तुम बरसो मुझपर झमाझम ?
किसी के कहने भर से
कोई मेघ भला
थोड़े ही बरसता है?
मैं
कैसे कहूॅं
कि तुम मुझे आशीश दो ,वरदान दो
भला किसी  के  कहने - चाहने  भर से
कोई धर्मात्मा -परमात्मा थोड़े ही पिघलता है ?
मुझे तो भावना में
खड़े हो  जाना  है
निर्वस्त्र -स्नाथ
और बाकी सब कुछ तो
स्वयं ही हो जाना है।