नहीं
मैं नहीं मरूंगा!
जितना भी क्यों न जला लो तुम मुझको
मैं कभी नहीं जलूँगा!
मैं तुम्हारे वजूद का हिस्सा जो हूँ
हँसी, खुशी,सुख,आनंद,प्रेम आदि के साथ
दुख, क्रोध,हिंसा,हवस बनकर
तुम्हारे भीतर ही पैठा हूँ
तुममें ही जीता हूँ यकसार होकर
तुम्हारी ज़रूरत बनकर...
फिर चाहो या न चाहो
जब-तब, बार-बार निकल/उबर आता हूँ
कालिया नाग बनकर
तुम्हारे जीवन जल को जहरीला करने याकि
कोई पुराना श्राप बनकर या फिर
राहू का ग्रहण बनकर
तुम्हें ग्रसने!
मुझे मालूम है तुम सब
राम या कृष्ण नहीं बने रह सकते हो जीवन भर
तो मैं भी
आता ही रहूँगा तुममें बार बार
अपनी विद्रुप हँसी हँसता
वासना का काला नाग बनकर
तुम्हें बार बार
डसने!
------ सुरेन्द्र भसीन
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