हालात
अपनी
सारी कविताओं को
पढ़ो और देखो
क्या इसमें से कोई एक कविता भी
पड़ोसी या श्रोता के साथ
उसके घर जाती है, या
उसके दिल में घर कर जाती है?
माना कि
तुम्हारी सारी की सारी कवितायें
उसको या उसके बारे में ही
कुछ कहती हैं, मगर
क्या कोई उसके
जीवन में कभी रहती है या
उसे याद रहती है?
सारी कविताओं को
पढ़ो और देखो
क्या इसमें से कोई एक कविता भी
पड़ोसी या श्रोता के साथ
उसके घर जाती है, या
उसके दिल में घर कर जाती है?
माना कि
तुम्हारी सारी की सारी कवितायें
उसको या उसके बारे में ही
कुछ कहती हैं, मगर
क्या कोई उसके
जीवन में कभी रहती है या
उसे याद रहती है?
तुम दूर टीले पर बैठे
एक ढ़ोंगी बाबा-से
इंतजार में हो कि
कोई पहाड़ी चढ़कर आये,
तुम्हें मान दे, तुम्हें पूजे
और प्रार्थना करके
प्रसाद स्वरूप तुम्हारी कविता ले जाये
ताबीज बनाकर पहने और
तुम्हारे सदियों गुण गाये....
मगर तुम यह तय नहीं करते हो
कि तुम्हारी कविता उसके
दुख दर्द में काम आये
उसके सिरहाने भी बैठे और कभी उसके
बगलगीर भी हो जाये।
एक ढ़ोंगी बाबा-से
इंतजार में हो कि
कोई पहाड़ी चढ़कर आये,
तुम्हें मान दे, तुम्हें पूजे
और प्रार्थना करके
प्रसाद स्वरूप तुम्हारी कविता ले जाये
ताबीज बनाकर पहने और
तुम्हारे सदियों गुण गाये....
मगर तुम यह तय नहीं करते हो
कि तुम्हारी कविता उसके
दुख दर्द में काम आये
उसके सिरहाने भी बैठे और कभी उसके
बगलगीर भी हो जाये।
तुम्हारी कविता में
अब मिठास नहीं है और
उसमें ईश्वर का वास नहीं है
निरा स्वार्थ ही लपलपाता है इसलिए
अब तुम्हें कोई सुनना-पढ़ना नहीं चाहता है और
तुमसे और तुम्हारी कविता से मुँह फेर
पराया हो निकल जाता है।
------- सुरेन्द्र भसीन
अब मिठास नहीं है और
उसमें ईश्वर का वास नहीं है
निरा स्वार्थ ही लपलपाता है इसलिए
अब तुम्हें कोई सुनना-पढ़ना नहीं चाहता है और
तुमसे और तुम्हारी कविता से मुँह फेर
पराया हो निकल जाता है।
------- सुरेन्द्र भसीन