प्यास
मेरे भीतर
अब मेरा बचा क्या है ?
मेरे अन्तर्मन में तो -
तू, तू और सिर्फ तू ही बसा है।
भीतर से उठती आती है
सिर्फ तेरे नाम ही की आवाज
जो मुझे, अपने साथ ही खींच ले जाती है
घंटों की तेरी सुधी में
मेरी बेसुधी हो जाती है।
लौ-सी सनाथ खड़ी मेरी आत्मा
जलती है न बुझती है
तेरी चाह में बस
डबडबाये जाती है।
------- -सुरेन्द्र भसीन
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