ओ मेरे पिता !
तुम मेरे भीतर समोये हो , बोये हो , रोपे हुए हो अपने आपको कैसे ?
कि यों तो कवि बनकर विचरते हो समूचे संसार में
मगर फिर भी मेरे भीतर रहते हो एक कथाकार बनकर।
तुम्हीं ने मुझको कि अपने अपको न जाने कब चेताया
कथाओं में मनके-मनके अनेक अर्थों में घुमाया ,
बीज-बीज कथानक में गहरे ,नीचे जड़ तक गहरे मिट्टी में गोड़ कर दबाया।
सुरों-सुरों लहरियों हवा में फहराया पात्रों के भाव व अपने विचार बनकर।
रानी भी तुम्ही हुए और राजा भी ,
और राजकुमारी की चाह में लंबी दुरुह समुद्री व भीहड़ यात्राओं में भी तुम्ही
निकले एक वीर राजकुमार बनकर।
तुम्ही संतों संग दर-दर भटके
कहीं न ठिठके , कहीं न उकते।
और मेरी कथाओं की आत्मा में अब भी तुम ही हो।
न जाने कब से
मेरे भीतर अडोल पड़ी
तुम्हारी कथाकार बनने की तपस्यायैं
कब मुझ में प्रस्फुटित हुंई
और
कब नवतरू हुंई
यह मैंनें भी अब आ कर जाना
और अपने भीतर पड़े एक विशालात्मा कथाकार को
अनेक वर्षों बाद ही पहचाना।
अभी जो मेरे किस्से -कहानियों में समूचा बर्ह्मांड आ बसा है ,
उसके तजुर्बों में भी तो तुम्ही वय
तुम्ही मेरे भीतर बसे हो कस्तूरी महक बनकर
सदियों-सदियों फहर जाने के लिए ,
और मेरे किस्से-कहानियों में सदा-सदा बस जाने के लिए।
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मगर फिर भी मेरे भीतर रहते हो एक कथाकार बनकर।
तुम्हीं ने मुझको कि अपने अपको न जाने कब चेताया
कथाओं में मनके-मनके अनेक अर्थों में घुमाया ,
बीज-बीज कथानक में गहरे ,नीचे जड़ तक गहरे मिट्टी में गोड़ कर दबाया।
सुरों-सुरों लहरियों हवा में फहराया पात्रों के भाव व अपने विचार बनकर।
रानी भी तुम्ही हुए और राजा भी ,
और राजकुमारी की चाह में लंबी दुरुह समुद्री व भीहड़ यात्राओं में भी तुम्ही
निकले एक वीर राजकुमार बनकर।
तुम्ही संतों संग दर-दर भटके
कहीं न ठिठके , कहीं न उकते।
और मेरी कथाओं की आत्मा में अब भी तुम ही हो।
न जाने कब से
मेरे भीतर अडोल पड़ी
तुम्हारी कथाकार बनने की तपस्यायैं
कब मुझ में प्रस्फुटित हुंई
और
कब नवतरू हुंई
यह मैंनें भी अब आ कर जाना
और अपने भीतर पड़े एक विशालात्मा कथाकार को
अनेक वर्षों बाद ही पहचाना।
अभी जो मेरे किस्से -कहानियों में समूचा बर्ह्मांड आ बसा है ,
उसके तजुर्बों में भी तो तुम्ही वय
तुम्ही मेरे भीतर बसे हो कस्तूरी महक बनकर
सदियों-सदियों फहर जाने के लिए ,
और मेरे किस्से-कहानियों में सदा-सदा बस जाने के लिए।
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